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स्त्रियां सदैव उठाती है एक बोझ समझौते का । स्वाभिम

स्त्रियां सदैव उठाती है एक बोझ
समझौते का ।
स्वाभिमान को मार
अपनाती है एक बोझ
अदृश्य बेड़ियों का ।

परिवार, समाज की खातिर
चुपचाप पी जाती हैं अपमान की घुट
दो बूँदी आँसू समझ ,
तभी तो सीता की उपाधि पाती है?
और अंत तक देती है अग्नि परीक्षा
अपने वजूद की तलाश में
सिसकियों में जीवन व्यतीत कर,
हे स्त्री,
तुम पुरुष कभी न बन पाओगी

// IN CAPTION //
 Love from ❤️...Mythical💘 Writer😉
-----------------------------------------------------

स्त्री तुम पुरुष न बन पाओगी
अपने प्रिय को भूल,
दूजा न अपना पाओगी।

तुम अंतर्द्वद्व में फंसी
स्त्रियां सदैव उठाती है एक बोझ
समझौते का ।
स्वाभिमान को मार
अपनाती है एक बोझ
अदृश्य बेड़ियों का ।

परिवार, समाज की खातिर
चुपचाप पी जाती हैं अपमान की घुट
दो बूँदी आँसू समझ ,
तभी तो सीता की उपाधि पाती है?
और अंत तक देती है अग्नि परीक्षा
अपने वजूद की तलाश में
सिसकियों में जीवन व्यतीत कर,
हे स्त्री,
तुम पुरुष कभी न बन पाओगी

// IN CAPTION //
 Love from ❤️...Mythical💘 Writer😉
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स्त्री तुम पुरुष न बन पाओगी
अपने प्रिय को भूल,
दूजा न अपना पाओगी।

तुम अंतर्द्वद्व में फंसी