स्त्रियां सदैव उठाती है एक बोझ समझौते का । स्वाभिमान को मार अपनाती है एक बोझ अदृश्य बेड़ियों का । परिवार, समाज की खातिर चुपचाप पी जाती हैं अपमान की घुट दो बूँदी आँसू समझ , तभी तो सीता की उपाधि पाती है? और अंत तक देती है अग्नि परीक्षा अपने वजूद की तलाश में सिसकियों में जीवन व्यतीत कर, हे स्त्री, तुम पुरुष कभी न बन पाओगी // IN CAPTION // Love from ❤️...Mythical💘 Writer😉 ----------------------------------------------------- स्त्री तुम पुरुष न बन पाओगी अपने प्रिय को भूल, दूजा न अपना पाओगी। तुम अंतर्द्वद्व में फंसी