अंधकार मिटता नहीं न दिखता सवेरा है, रात काली और कितनी शेष, बहुत बड़ी दुविधा है। सांस अधूरी है, जिंदगी लम्बी है, पड़ाव अभी दूर है, इस दुख भरे जीवन में, न मिलती कोई सुविधा है। आंखों में सपने हैं, बेगाने अपने हैं, अपनों ने छोड़ा है, दिल को यों तोड़ा है, बाकी का कहना क्या, जिसे अपना कहा खंजर उसने ही घोंपा है। ©Karan Kumar #बेगानी_जिंदगी #karan_poetry #सफरनामा