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"हिंदी दिवस" क्या आज हिंदी सिर्फ दिवस में सिमट गय

"हिंदी दिवस"

क्या आज हिंदी सिर्फ दिवस में सिमट गयी ?
क्या आज हिंदी की पहचान मिट गयी ?
मैं कहता हूँ नही , बिलकुल नही ।
हाँ , अंग्रेजीदा लोगो की आँखों की किरकिरी हूँ,
हाँ , अंग्रेजी जुबानों के लिए थोड़ी चिरपिरी हूँ।
मैं बच्चन का हाला हूँ , मै तुलसी की माला हूँ ।
मैं उन्मुक्त गगन निराला हूँ।
छुधा अतृप्त लिये मैं हिंदी प्रेमियों का निवाला हूँ।
जब कोई ओजस्वी कवि मुक्त स्वर में गाता है ,
जब खुसरो , रासो , रसखान छंद सुनाता है।
तब हिंदी परिष्कृत होती है ।
मैं मीरा का प्रेम , मैं कबीर की वाणी ,
मैं मैथिली की बोली , मैं कितनी भोली ।
अब तक तो पहचान वही है , मरी मुझे न समझो ,
मुझमें अब भी जान वही है ।

©Rajesh Raana
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