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~ ग़ज़ल ~ •| ओ नादान परिंदे घर आजा |• परिंदा उड़ा

~ ग़ज़ल ~
•| ओ नादान परिंदे घर आजा |•

परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था,
धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से लड़कर ही उसने मुकाम बनाया था।

उड़ा दूर तक नील गगन में, आज़ादी का स्वाद भी चखा,
चमक दुनिया की चकाचौंध ने, उसका मन भरमाया था।

हासिल को और हासिल करने उंची उड़ान वो भर के उड़ा,
देख मसखरे की नौटंकी, परिंदा भी ललचाया था।

सपनों को फिर टूटते देखा, आसमां में भी फिर जेल देखा,
झूठी दुनिया की खोखली बुनियाद देख, पहली बार वो घबराया था।

देर नहीं अभी शाम है बाकी, सब ठीक होगा ये आस है बाकी,
महिमा पुकारे, लौट आ ए परिंदे, मैंने पहले भी तुझे बुलाया था।। ~ ग़ज़ल ~
•| ओ नादान परिंदे घर आजा |•

परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था,
धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से लड़कर ही उसने मुकाम बनाया था।

उड़ा दूर तक नील गगन में, आज़ादी का स्वाद भी चखा,
चमक दुनिया की चकाचौंध ने, उसका मन भरमाया था।
~ ग़ज़ल ~
•| ओ नादान परिंदे घर आजा |•

परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था,
धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से लड़कर ही उसने मुकाम बनाया था।

उड़ा दूर तक नील गगन में, आज़ादी का स्वाद भी चखा,
चमक दुनिया की चकाचौंध ने, उसका मन भरमाया था।

हासिल को और हासिल करने उंची उड़ान वो भर के उड़ा,
देख मसखरे की नौटंकी, परिंदा भी ललचाया था।

सपनों को फिर टूटते देखा, आसमां में भी फिर जेल देखा,
झूठी दुनिया की खोखली बुनियाद देख, पहली बार वो घबराया था।

देर नहीं अभी शाम है बाकी, सब ठीक होगा ये आस है बाकी,
महिमा पुकारे, लौट आ ए परिंदे, मैंने पहले भी तुझे बुलाया था।। ~ ग़ज़ल ~
•| ओ नादान परिंदे घर आजा |•

परिंदा उड़ा कुछ हासिल करने, मुश्किलों से टकराकर मुस्कुराया था,
धूप कड़ी थी, बादल भी बरसे, तूफ़ानों से लड़कर ही उसने मुकाम बनाया था।

उड़ा दूर तक नील गगन में, आज़ादी का स्वाद भी चखा,
चमक दुनिया की चकाचौंध ने, उसका मन भरमाया था।
mahimajain6772

Mahima Jain

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