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जुर्म बढ़ता देखकर मैं सोचता हूंँ, शांति का संग

जुर्म बढ़ता  देखकर  मैं  सोचता  हूंँ,
शांति का संगम यहांँ पर खोजता हूंँ।
स्वार्थ में सब हो रहे पागल यहांँ पर,
इसलिए मैं कम यहांँ पर बोलता हूंँ।। ☺️ • Like • Comment • Share • ☺️
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सहभागिता सबके लिए खुली है |#आपकी_सहेली 

शीर्षक :
#सोचता_हूँ
#सोचती_हूँ
जुर्म बढ़ता  देखकर  मैं  सोचता  हूंँ,
शांति का संगम यहांँ पर खोजता हूंँ।
स्वार्थ में सब हो रहे पागल यहांँ पर,
इसलिए मैं कम यहांँ पर बोलता हूंँ।। ☺️ • Like • Comment • Share • ☺️
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