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वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था, चलत

वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था,
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था,

वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था,
वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था,

वो सादा जीवन जीता था , कोई 'आडंबर' ना करता था,
वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और 'दास्य-भाव' में जीता था,

वो छलदंभ-भेद से दूर था, और जीवनरस से भरपूर था,
वो ललित-कला का प्रेमी था, वो ध्यान-योग में रहता था,

वो अपनी बात पे रहता था,और अत्याचार ना सहता था,
वो तूफानों से लड़ता था , और  हुक्मरानो से अड़ता था,

वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था,
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था।।
 वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था

वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था
वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था

वो सादा जीवन जीता था , कोई आडंबर ना करता था
वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और दास्य भाव में जीता था
वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था,
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था,

वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था,
वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था,

वो सादा जीवन जीता था , कोई 'आडंबर' ना करता था,
वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और 'दास्य-भाव' में जीता था,

वो छलदंभ-भेद से दूर था, और जीवनरस से भरपूर था,
वो ललित-कला का प्रेमी था, वो ध्यान-योग में रहता था,

वो अपनी बात पे रहता था,और अत्याचार ना सहता था,
वो तूफानों से लड़ता था , और  हुक्मरानो से अड़ता था,

वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था,
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था।।
 वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था
चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था

वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था
वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था

वो सादा जीवन जीता था , कोई आडंबर ना करता था
वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और दास्य भाव में जीता था
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