वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था, चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था, वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था, वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था, वो सादा जीवन जीता था , कोई 'आडंबर' ना करता था, वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और 'दास्य-भाव' में जीता था, वो छलदंभ-भेद से दूर था, और जीवनरस से भरपूर था, वो ललित-कला का प्रेमी था, वो ध्यान-योग में रहता था, वो अपनी बात पे रहता था,और अत्याचार ना सहता था, वो तूफानों से लड़ता था , और हुक्मरानो से अड़ता था, वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था, चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था।। वो सतत् निरंतर चलता था, वो जीवन-पथ पे चलता था चलता था धूल-ओ-शूल पर,वो दृणसंकल्पित चलता था वो निश्छलता से कहता था,वो तेज-भाव में लिखता था वो भृकुटी ताने चलता था , वो सीना तान के चलता था वो सादा जीवन जीता था , कोई आडंबर ना करता था वो प्रभुसत्ता का प्रेमी था , और दास्य भाव में जीता था