अब लड़ के लेंगे।। मैं भी हूं हिस्सा इस जमीं का, एक कतरा आसमां मेरा भी है। ये जंगल, सूरज चांद, तारे, समंदर, नदिया, ये सारा जहां मेरा भी है। चाँद को रोटी समझ कर, बीता बचपन बहुत मगर। यौवन की दहलीज पे आ, चाहिए नया कोई सहर। दर्द में रोता था मैं और, अटारियों में तुम सोते रहे। जिस सड़क घिसे तुम टायरें, उसी पे दफ़न हम होते रहे। इंकलाबी तो थे नहीं हम, ज़िन्दगी जिया जैसी मिली। अब नाकाबिले बर्दाश्त है, उम्मीद किरण ऐसी खिली। है ये बगावती सुर नहीं, बस अधिकार हूँ मैं मांगता। जूठन नहीं, पुराने लिबास नहीं, क्यूँ पैबन्द रहूं मैं टांकता। ज़ुल्म सहना फितरत नहीं, फिर क्यूँ मुझपे ढाया गया। ज्ञान किताब कानून संविधान है, फिर क्यूँ मैं हासिये पे पाया गया। अब बिगुल बजने को है, ऐसे या वैसे सही, हक हमारा चाहिए। गज़ कट्ठा बीघा एकड़, हिस्से का कतरा एक एक हमारा चाहिए। रौशनी में नहाते रहे तुम, एक टुकड़ा वो शमां मेरा भी है। मैं भी हूँ हिस्सा इस जमीं का, एक टुकड़ा आसमां मेरा भी है।। ©रजनीश "स्वछंद" #NojotoQuote अब लड़ के लेंगे।। मैं भी हूं हिस्सा इस जमीं का, एक कतरा आसमां मेरा भी है। ये जंगल, सूरज चांद, तारे, समंदर, नदिया, ये सारा जहां मेरा भी है। चाँद को रोटी समझ कर,