ये दिल भी क्या चीज़ है ना आपका ना हमारा बड़ा ही कम्बख़्त नाचीज़ है गर रखें इसको पल्लू में छुपा के तो झाँक के देखे, ये ऐसा बदतमीज़ है छुप जाए मासूमियत की परछाइयों में बड़े बड़ों का ये बहुत अज़ीज़ है पर जब फ़िदा हो अपनी महबूबा पे कोई पागल आशिक़ तो उन बिचारों की तड़पती रूह का, ये कफ़न जैसा क़मीज़ है ये दिल भी क्या चीज़ है ना आपका ना हमारा बड़ा ही कम्बख़्त नाचीज़ है गर रखें इसको पल्लू में छुपा के तो झाँक के देखे, ये ऐसा बदतमीज़ है छुप जाए मासूमियत की परछाइयों में