कल्पना सूख गई कल्पना की नदी कहाँ चले कविता की नौका मौसम भी हो गया प्रतिकूल उल्टी दिशा झुके मस्तूल बहती यदि कल्पना सरिता कुछ प्रवाह लहरों के आते गीत ग़ज़ल कविता बन जाते क्षण में बीत जाती सदी सूख गई कल्पना की नदी -मन्यु # kalpana