*प्रिय* ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆ जीवन पथ पर अकेला ही चला था मैं, हमसफ़र हम़ बन गये प्रिय अंजान थे एक-दूसरे से दोनों, बंधे कुछ यूँ डोर से दो जिस्म एक जान हो गये प्रिय, तुम सुलझी सरल, मैं अलझेड़ों में उलझा प्रिय, तुम एकदम़ ठन्डी छांव-सी, मैं दहकती आग-सा प्रिय, सहज स्वभाव तुम्हारा, मन गंगा का नीर प्रिय, उग्र तेवर वाला मैं जलता एक़ तीर प्रिय, दिन और रात-सी है अपनी कहानी, अंधकार भरे मेरे जीवन में उजली तुम एक भोर प्रिय, जीवन ये उड़ती पतंग है मेरा, तुम इसकी हो डोर प्रिय, हिचकोले खाती जलधि में जीवन नैय्या, नैय्या का तुम हो छोर प्रिय, संग सदा ही चलेंगें हर पथ़ पर संग-संग रहना, हाथ़ थामे रहना मेरा, जीवन ये चले जिस ओर प्रिय, जीवन पथ पर अकेला ही चला था मैं, हमसफ़र हम़ बन गये प्रिय अंजान थे एक-दूसरे से दोनों, बंधे कुछ यूँ डोर से दो जिस्म एक जान हो गये प्रिय...!! ©Varun Raj Dhalotra #anniversary #Love