आग लगी तो जाना मैंने, जलना कितना मुनासिब होता है, एक बार हाथ रख दिया था जलती लाव पर, मुझे लगा दर्द बस इतना सा होता है, और गली-गली फिर रहे है, ये आज के आशिक़, इन्हें कोई बताओं, मेहबूब से बिछड़ना कितना सोगवार होता है, ये जो कशमकश है, प्यार की नगरी में, कोई समझाये...चाहत पर अपनी, किसी को कितना भरोसा होता है, ये रोज़ मिलना ढेर सारी बातें करना, सब सही है, पर क्या तब भी कोई, का़बिल-ए-ए'तिमाद होता है। आग लगी तो जाना मैंने, जलना कितना मुनासिब होता है, एक बार हाथ रख दिया था जलती लाव पर, मुझे लगा दर्द बस इतना सा होता है, और गली-गली फिर रहे है, ये आज के आशिक़, इन्हें कोई बताओं,