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यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।  मैं भी उ

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। 
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ 

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। 
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ 

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। 
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ 

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता। 
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥  43
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। 
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥ 

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली। 
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥ 

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता। 
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥ 

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता। 
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥  43
shubham6499

Shubham

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