तेरे लिए अपनी आँखों को बेज़ार क्यो करूँ, बेवजह ही राहों का दीदार क्यो करूँ,हुई ही नही मुककम्मल मेरी इबादत, जब तुझे आना ही नही तो तेरा इंतज़ार क्यो करूँ मेरी अधूरी ख़्वाहिश