ज़र्रा ज़र्रा तुझको ही चाहता हैं ऐसे, जैसे तर तर पानी से प्यासा तर जाता हैं, तेरे नाम की ही माला फेरता हैं दिन भर, जैसे कोई भक्त दीवाना बन जाता हैं, की तुझमे ही दिन रात,तुझमे ही शाम ओ सुबह, तुझमे ही चँदा का उजाला दिख जाता हैं, कैसे तारीफ़े करु मैं,तेरे इस मुखड़े की, कोहिनूर हीरा तक फीका पड़ जाता हैं। #TeraMukhda