मन बंजारा सा दिल आवारा सा, मैं अवारा हूँ, ये अवारा मन की आवाज है, कालकोठरी से भागा, जैसे ये सोया साज़ है, दिशाहीन कोरे पन्नो सा, आसमान का बिखरा तारा, तपो भ्रष्ट का हूँ मैं मनीषी,घूमूं बनके बंजारा।