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कुछ तो है या कुछ हुआ हुआ सा लगता है तेरी उल्फ़त मे

कुछ तो है या कुछ हुआ हुआ सा लगता है 
तेरी उल्फ़त में उठा धुंआ धुंआ सा लगता है 

तेरी निगाहें तेरी जुबाँ से मेल नहीं खातीं 
तेरा अंदाज-ए-बयाँ जुदा जुदा सा लगता है 

क्या हुआ कि किसी ने कुछ कहा तुझसे 
मेरी ओर बढ़ता कदम रुका रुका सा लगता है 

एक मुद्द्त बाद तो दिल ने पाई है रोशनी 
वो चिराग़ ही मुझे बुझा बुझा सा लगता है 

तेरी छत पे देख चाँदनी छिटकी नहीं क्या 
ये चाँद मुझे उखड़ा उखड़ा सा लगता है 

आईना-ए चश्म अश्कों से भरा न कर मेरा 
अक्श ही मुझे धुंधला धुंधला सा लगता है 

जिस मोड़ के बाद साहिल को आना था 
उसी मोड़ पे तूफाँ खड़ा खड़ा सा लगता है 

जिसे झुका पाने की जुर्रत न थी जमाने में 
वही सर आज झुका झुका सा लगता है 

तुम्हारी उदासियाँ हवायें चुरा लाई जैसे 
मिजाज़ उनका खफ़ा खफ़ा सा लगता है

©अज्ञात #चाँद
कुछ तो है या कुछ हुआ हुआ सा लगता है 
तेरी उल्फ़त में उठा धुंआ धुंआ सा लगता है 

तेरी निगाहें तेरी जुबाँ से मेल नहीं खातीं 
तेरा अंदाज-ए-बयाँ जुदा जुदा सा लगता है 

क्या हुआ कि किसी ने कुछ कहा तुझसे 
मेरी ओर बढ़ता कदम रुका रुका सा लगता है 

एक मुद्द्त बाद तो दिल ने पाई है रोशनी 
वो चिराग़ ही मुझे बुझा बुझा सा लगता है 

तेरी छत पे देख चाँदनी छिटकी नहीं क्या 
ये चाँद मुझे उखड़ा उखड़ा सा लगता है 

आईना-ए चश्म अश्कों से भरा न कर मेरा 
अक्श ही मुझे धुंधला धुंधला सा लगता है 

जिस मोड़ के बाद साहिल को आना था 
उसी मोड़ पे तूफाँ खड़ा खड़ा सा लगता है 

जिसे झुका पाने की जुर्रत न थी जमाने में 
वही सर आज झुका झुका सा लगता है 

तुम्हारी उदासियाँ हवायें चुरा लाई जैसे 
मिजाज़ उनका खफ़ा खफ़ा सा लगता है

©अज्ञात #चाँद