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अपूर्ण व्यथा -2 हमें कहना बहुत कुछ था कह न सके। म

अपूर्ण व्यथा -2

हमें कहना बहुत कुछ था कह न सके।
मन के शब्दों को मुख पर नहीं ला सके।

उम्र भर कुछ व्यथा से पीड़ित रहे हम ,
हर्ष-ध्वनीयों को मन में सजा न सके ।

तर्पण में अर्पण को अंजुरी में धरे ,
प्रवाहित गंगा में अर्पित नहीं कर सके ।

कहने को तो सब अपने थे अपने ही है ,
स्वयं को स्वयं का कभी मान ही न सके।

मन की आशाओं को मन में जलाते रहे,
अपूर्ण जीवन को पुरस्कृत कर न सके ।

ऐसे देखें तो थे स्वप्न हम बहुत से मगर ,
सम्मुख सपन के द्वार को पार कर न सके।

--RAG The ghazal of RAG
#अपूर्ण व्यथा -2
#yqdidi #yqbaba #yqquotes #yqghazal #yqhindi
अपूर्ण व्यथा -2

हमें कहना बहुत कुछ था कह न सके।
मन के शब्दों को मुख पर नहीं ला सके।

उम्र भर कुछ व्यथा से पीड़ित रहे हम ,
हर्ष-ध्वनीयों को मन में सजा न सके ।

तर्पण में अर्पण को अंजुरी में धरे ,
प्रवाहित गंगा में अर्पित नहीं कर सके ।

कहने को तो सब अपने थे अपने ही है ,
स्वयं को स्वयं का कभी मान ही न सके।

मन की आशाओं को मन में जलाते रहे,
अपूर्ण जीवन को पुरस्कृत कर न सके ।

ऐसे देखें तो थे स्वप्न हम बहुत से मगर ,
सम्मुख सपन के द्वार को पार कर न सके।

--RAG The ghazal of RAG
#अपूर्ण व्यथा -2
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