कहानी मैं वैलेंटाइन नहीं मनाती भाग ६ #part_6 कहानी- मैं वेवेलेंटाइन नहीं मनाती सम्मान ही तो था ये..और सम्मान ही तो प्रेम का दूसरा स्वरुप होता है..इस एक वाक्य ने उसे स्थिर कर दिया था.. रूद्र-"रो सकती हो तुम कोई बात नहीं" आरवी-"हहह राक्षस हो तुम पता है तुम्हें..दुष्ट व्यक्ति...आखिर मेरी स्टोरी नार्मल कैसे हो सकती थी आखिर ये मेरी कहानी है जैसी अजीब सी मैं वैसे तुम..हहह सही में तुम राक्षस ही हो आज से तुम पर मेरा इकलौता ये ही हक़ होगा येही एक रिश्ता तुम मेरे राक्षस हो सिर्फ और सिर्फ मेरे, रूद्र पर किसी का हक़ हो सकता है मगर राक्षस सर्फ मेरा" रूद्र-"अरे तुम तो स्थिति का फायदा उठा रही हो..हद्द है " आरवी-"यार आंसू रोकने का सौफ्टवेयर होता है क्या कोई मुझे हंसी भी आरही है और रोना भी" प्रेम का वो बीज जो महीनो पहले अनजाने में बो दिया गया था आज अंकुरित हो चुका था...एक लम्बी सांस छोड़कर उसने अपने आसमानी मित्र सप्तऋषियों से कहा "येही है वो,बस अब स्थिरता चाहिए.."