काबा किस मुंह से जाओगे 'ग़ालिब' शर्म तुम को मगर नहीं आती Mirza Ghalib कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यूं रात भर नहीं आती आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हंसी अब किसी बात पर नहीं आती