सफ़र हर सफ़र को ऐ मौला आसान बना देना हर शाम दिवाली हर दिन को रमजान बना देना किसी को दो गज जमीं को मोहताज़ न होना पड़े ख़ुदा तुम हर शमसान को कब्रिस्तान हर कब्रिस्तान को शमसान बना देना हर सफ़र को ऐ मौला आसान बना देना हर शाम दिवाली हर दिन को रमजान बना देना किसी को दो गज जमीं को मोहताज़ न होना पड़े ख़ुदा तुम हर शमसान को कब्रिस्तान हर कब्रिस्तान को शमसान बना देना