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कभी रुसवा हुए तेरी गलियों में हम, फिर भी

कभी रुसवा हुए तेरी गलियों में हम,   
      फिर भी माबूद रहे तेरे इश्क़ के हम,
ये रुसवाई,
ये बेवफ़ाई और तेरे ग़म का सिला, कब का भूल चुके हम,
   अब तो सिर्फ हमें ,
मंजर-ए-इश्क़ की दरकार है,
सजा दो क़बूल है हमें,
   मरते दम तक कहेंगे हमें तुमसे प्यार है।
   #गहलोत
कभी रुसवा हुए तेरी गलियों में हम,   
      फिर भी माबूद रहे तेरे इश्क़ के हम,
ये रुसवाई,
ये बेवफ़ाई और तेरे ग़म का सिला, कब का भूल चुके हम,
   अब तो सिर्फ हमें ,
मंजर-ए-इश्क़ की दरकार है,
सजा दो क़बूल है हमें,
   मरते दम तक कहेंगे हमें तुमसे प्यार है।
   #गहलोत
sunilgahlot3967

Sunil Gahlot

New Creator