Nojoto: Largest Storytelling Platform

नदी के किनारे बैठे बैठे भी रोज़ उस पार बह जाता हूं

नदी के किनारे बैठे बैठे भी
रोज़ उस पार बह जाता हूं 
मिली थी जहां वो पहली बार
वही उसे ढूंढने निकल जाता हूं।।

नज़रे मिलेंगी तो क्या बात करूंगा
इस सोच मैं मुस्कुराता हूं।
कहीं छूने से दाग़ ना लगे
इसलिए झलक पा कर लोट आता हूं।।

ये नजरों और नजारों का इश्क है
जिसकी लहरों संग घूम आता हूं।
मैं नदी के किनारे बैठे बैठे भी
इस पार उस पार बह जाता हूं ।।

©Dr. Muskan
  #लहरों_सा_मन मेरा
muskangrover9654

Dr. Muskan

New Creator

#लहरों_सा_मन मेरा

92 Views