ज़िंदगी जीने की सज़ा मिली है मुझे जुर्म क्या है कोई बताता ही नहीं ख़ुदको बाँटते-बाँटते थक गई हूँ मैं मेरे हिस्से में क्या है कोई बताता ही नहीं..!!! ©the unsaid arpita saza-e-zindgi...