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बारिश कि ये बुंदे,छिप के जैसे कोई बाण चलाता मन कि

बारिश कि ये बुंदे,छिप के जैसे कोई बाण चलाता 
मन कि संवेदनाओ कि तारो को जैसे कोई छेड़ जाता
यादो के झरोखे से एक चेहरा उभर आता 
उसके सागर जैसी आंखों कि याद में दिल जैसे खो सा जाता
उन आंखों से कुछ कहना था शायद उसको
दिल कि गहराईयों में उस चेहरे का अक्स कई सवाल छेड़ जाता।

©Amit Sir KUMAR
  #Remember बारिश कि ये बुंदे....

#Remember बारिश कि ये बुंदे.... #शायरी

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