घर मका दुका छोड़ आए, हम तुम्हारे लिए। हर रिश्ते नाते सब तोड़ आए हम तुम्हारे लिए। अब मेरी जहां बस गई है तुझसे हर बेड़ियों को अब तोड़ आए हम तुम्हारे लिए। अब मेरा कुछ नहीं तुम्हारे सिवा हर उलझनों को छोड़ आए हम तुम्हारे लिए। , ©Manzoor Alam Dehalvi #मेरी कविता