हम चाहते कुछ हैं, होता कुछ और है, हम सोचते कुछ हैं, होता कुछ और है... इस चाहने और होने में जिसका हाथ है उसपे विश्वास रखना वो ख्याली है खयालात समझने वाला हमसे बेहतर हमारे हालात समझने वाला।। ये कहानी नहीं मगर लगेगी कहानी जैसी ही, इससे पहले कि मैं इस बात का ज़िक्र करूं बता दूं हमारी दो दुकान है दवा कि एक मैंने 1980 में शुरू की और दूसरी 1992 मे..और मैंने 1992 वाली दुकान को चुना अपने लिए और पुरानी दे दी छोटे भाई को।। 31मार्च 1997, रात के 12.30 बजे छोटे भाई का फोन आता है कि उसका एक्सीडेंट हो गया है और कमर में बहुत चोट आई है, उसे ला कर नर्सिंग होम में एडमिट कराया, और सुबह मैं दोनो दुकान की चाभी ले कर चल दिया क्योंकि में इन दिनों पैदल आया करता था शॉप परनमुझे घंटा भर लग जाता। उस घंटे में म