अपनी जिन्दगी से असल, आज मुलाकात हो गई। मैं चहकते-मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। बेवफाई मुझसे करना हां तेरी आदत सी हो गई, और तेरी ये आदत, मेरी वफा की गवाह हो गई। मैं चहकते- मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। ईन्तजार का तेरे, थमने ना दिया सिलसिला मैंनें, ना आया वो मंज़र, ज़िन्दगी की ढ़लती शाम हो गई। मैं चहकते- मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। हां थे सपने, थी इच्छाऐं, थी हर खव़्हाहिश तेरी ही, पर खुद पर ग़ुमान, आदत तेरी वो नाजायज़ हो गई। मैं चहकते- मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। चल मान लिया, बुरे हैं हम, मना ले खुशियां चार दिन, पर बुरी आदत से अपनी आज मैं खुद आज़ाद हो गई। मैं चहकते- मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। लम्बा - पथरीला चुना था रास्ता, ना थी कोई मंजिल, ठहरना ईच्छा नहीं, जरुरत अब इस काया की हो गई। मैं चहकते- मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई। थी सोना समझ कर बोझा उठाये जो सदियों से, उस कचरे को बेच रद्दी के भाव, गहरी नींद सो गई, मैं चहकते-मचलते समन्दर सी, शांत झील हो गई।