दर्द ....अगर दर्द के रूप में ही आता तो कितना सरल हो जाता उसके रास्ते से हट जाना....देखकर उसे छिप जाना....मूँद कर आँखें,दिखा देना पीठ उसको....पर.....दर्द भी तो बेदर्द ही ठहरा...नहीं दिखता वो आते हुए,आँसुओं का सैलाब साथ में लाते हुए....आता है वह...बहुरूपिया-सा...कभी-कभी बेइंतेहा खुशी के रूप में,अनगिनत चेहरों पर,खुशी की चमक के पीछे...चुपचाप दबे पाँव...एहसास ही नहीं होने देता अपनी हृदय-बेधि पदचाप का...मुस्कान छीनने वाली अदा पर इतराता आता है वह....और....कराता है अपने होने का बोध...स्तब्ध कर देता है चंचल शरीरों को, छीन लेता है मुस्कान, मासूम अधरों की...तृप्त कर लेता है अपने कानों को,असह्य चित्कारों से,रोती-बिलखती-कराहती असमर्थ आवाज़ों से..... OPEN FOR COLLAB✨ #ATgirlbg537 • A Challenge by Aesthetic Thoughts! ✨ CHECK OUT OUR PINNED POST! 😁🌼 Collab with your soulful words.✨ • Must use hashtag: #aestheticthoughts