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मिथिलापुरी पावन नगरी राजा जनक रानी सुनैना की प्या


मिथिलापुरी पावन नगरी राजा जनक रानी सुनैना की प्यारी राजकुमारी थी सीता।
सुकोमल, सुलक्षणों से परिपूर्ण सौम्यता की मूरत, विवाह की चिंता ने राजा को घेरा।

परम भारी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त को रखकर, सीता स्वयंवर रचाया।
धरा के महान भूपों को स्वयंवर का न्योता भिजवाया, भुवन पति राम-लक्ष्मण संग पधारे।

सभी आस लगाए थे, सभी के मन में धनुष तोड़ कर सीता के वरण की प्रबल इच्छा थी।
अनजान बैठे थे सारे, विधाता के लेखे से, खुद को ही सर्वश्रेष्ठ समझ रहे थे एक-दूसरे से।

शुभ घड़ी का समय बीता जा रहा था, कोई भी राजा, धनुष को हिला भी ना पा रहा था।
जनक का गुस्सा एवं चिंता पल-पल बढ़ती ही जा रही थी, क्रोध में सबको धिक्कारा।

लक्ष्मण ने क्रोध में खड़े हो, पल में धनुष को चकनाचूर करने को कहा, धर्म विरुद्ध बताया।
क्योंकि जब बड़े भाई राम बैठे हैं तो ऐसी कोई अभिलाषा नहीं कह कर राम को बुलाया।

गुरु की आज्ञा पाकर, राम सहज भाव से धनुष की ओर बढ़े, ना कोई भी अभिमान किया।
सहज ही धनुष को उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई धनुष को तोड़ दिया, राजा जनक मन ही मन हर्षाए।

सीता, राम को देख मन ही मन हर्षायीं, गौरी मां ने सीता को मनोवांछित वर दिया।
संपन्न हुआ सीता स्वयंवर मधुर परिणय सूत्र बंधन में बंधे राम और सीता एक हुए।   #yqbaba #yqdidi  #myquote #openforcollab  #collabwithmitali #ramayan_ka_saar #sita_svayambar


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सुकोमल, सुलक्षणों से परिपूर्ण सौम्यता की मूरत, विवाह की चिंता ने राजा को घेरा।

परम भारी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाने की शर्त को रखकर, सीता स्वयंवर रचाया।
धरा के महान भूपों को स्वयंवर का न्योता भिजवाया, भुवन पति राम-लक्ष्मण संग पधारे।

सभी आस लगाए थे, सभी के मन में धनुष तोड़ कर सीता के वरण की प्रबल इच्छा थी।
अनजान बैठे थे सारे, विधाता के लेखे से, खुद को ही सर्वश्रेष्ठ समझ रहे थे एक-दूसरे से।

शुभ घड़ी का समय बीता जा रहा था, कोई भी राजा, धनुष को हिला भी ना पा रहा था।
जनक का गुस्सा एवं चिंता पल-पल बढ़ती ही जा रही थी, क्रोध में सबको धिक्कारा।

लक्ष्मण ने क्रोध में खड़े हो, पल में धनुष को चकनाचूर करने को कहा, धर्म विरुद्ध बताया।
क्योंकि जब बड़े भाई राम बैठे हैं तो ऐसी कोई अभिलाषा नहीं कह कर राम को बुलाया।

गुरु की आज्ञा पाकर, राम सहज भाव से धनुष की ओर बढ़े, ना कोई भी अभिमान किया।
सहज ही धनुष को उठाया, प्रत्यंचा चढ़ाई धनुष को तोड़ दिया, राजा जनक मन ही मन हर्षाए।

सीता, राम को देख मन ही मन हर्षायीं, गौरी मां ने सीता को मनोवांछित वर दिया।
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