मेरे हाथों की लकीरों में हो नहीं, मैं जानता हूं साथ भी तुम हो नहीं, फ़रिश्ते बनकर आए थे मेरे जिंदगी में तुम, मगर आश अश्कों की तुम हो नहीं, अजनबी सा रुख़ रहा आपका, अपने हो कर अपने हो नहीं, अब क्या आपसे शिकवा और शिकायत जी, जब आप मेरे हाथों की लकीरों में हो ही नहीं।। ©RAJ KP मेरे हाथों की लकीरों में हो नहीं, मैं जानता हूं साथ भी तुम हो नहीं, फ़रिश्ते बनकर आए थे मेरे जिंदगी में तुम, मगर आश अश्कों की तुम हो नहीं, अजनबी सा रुख़ रहा आपका, अपने हो कर अपने हो नहीं,