वो शेष जो सँजोग, वियोग सुख-दुःख पीड़ा-प्रसन्नता, कामना, तृप्ति,क्रोध, क्षमा आदि आयामों से गुजरकर शीर्ष पर पहुँचा है, वही बचा हुआ ही सत्य “प्रेम रस“ है “प्रेम” जीवन के नवरस का संगम स्थल प्रयाग है शिखर पर पहुँचने के पश्चात प्रेम में केवल एक रस शेष रह जाता है.. “वैराग्य” वो शेष जो सँजोग, वियोग सुख-दुःख पीड़ा-प्रसन्नता, कामना, तृप्ति,क्रोध, क्षमा आदि आयामों से गुजरकर शीर्ष पर पहुँचा है,