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White ख्वाब है उड़ने का पर पर कट चुके हैं, लोगों

White ख्वाब है उड़ने का 
पर पर कट चुके हैं, 
लोगों का नहीं लगता जमघट
कि हम अब इतने बँट चुके हैं।
उन्हें मोहलत नहीं मिली
अपनों से रूबरू होने का,
जिंदगी भर वो इतना खट चुके हैं।
अब तन का पसीना 
कमबख्त सूखता ही नहीं, 
सूखेगा कैसे?
छाँव देने वाले 
सारे दरख्त कट चुके हैं।
अब के रिश्तों में वो 
पहले जैसा प्रेम कहाँ?
प्रेम होगा भी तो कैसे 
आधुनिक रिश्ते जो रट चुके हैं।

©दिनेश
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