लाखों की भीड़ में गुमनाम सा मैं कुछ ढूंढने की कोशिश में कुछ खोने के डर से परेशान सा मैं चलता रहा अकेला अपने ही सफ़र में अनजान सा मैं फिर वो आये मेरे सफर मे शामिल हो मेरे साथ चलने लगे मेरे हृदय में वो स्वयं को स्थापित करते चले गए हम चलते रहे उस सफर में जिसकी मंजिल थी शायद उस मौन का टूटना जिसे तोड़ने से डरता रहा मैं वो मुसाफिर बन कर आये थे अपनी स्मृतियाँ दे कर वो खो से गए शायद उस रास्ते जो फिर से हमें मिलाये नहीं ©Abhishek Rajhans वो चले गए #alone