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मुआमला काफी पैचिदा निकला खुशहाल दरख़्त में मैं इक

मुआमला काफी पैचिदा निकला 
खुशहाल दरख़्त में मैं इक सूखा पौधा निकला 

मतले में मिरा तावज्जो चाशनी था 
मख्ते के आते तक मैं अंजाम ए नीम निकला 

अज़ाब है ये कहना बावरी के मुहब्बत एक बेशर्त बला है
अाबले पड़ने लगे लफ़्ज़ों में कुरबत में शर्तों का 
व्यापार निकला 

निगाहों में पट्टी बांध चले हो बावरी, पैरों का खिंचाव फूकतें बड़ो
मंज़िल तक साये ना पहुंचे,गर ये टूटता तारा कफ़न निकला

©Meera Bawri darakht🍁
मुआमला काफी पैचिदा निकला 
खुशहाल दरख़्त में मैं इक सूखा पौधा निकला 

मतले में मिरा तावज्जो चाशनी था 
मख्ते के आते तक मैं अंजाम ए नीम निकला 

अज़ाब है ये कहना बावरी के मुहब्बत एक बेशर्त बला है
अाबले पड़ने लगे लफ़्ज़ों में कुरबत में शर्तों का 
व्यापार निकला 

निगाहों में पट्टी बांध चले हो बावरी, पैरों का खिंचाव फूकतें बड़ो
मंज़िल तक साये ना पहुंचे,गर ये टूटता तारा कफ़न निकला

©Meera Bawri darakht🍁
meerakrishna1804

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