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मेरे शिक्षक हे ज्ञानपुंज गुरु नमन तुम्हें। सन्मार्

मेरे शिक्षक हे ज्ञानपुंज गुरु नमन तुम्हें।
सन्मार्ग का ध्येय कराया हमें।।

शिक्षित कर हमें कृतार्थ किया।
जीवन का सच्चा अर्थ दिया।।

मेरे लिए ईश्वर रूप हैं आप।
तप की सजीव मूरत हैं आप।।

पद कमल आपके नमन करूँ।
तव ज्ञान दान से झोली भरूँ।।

मुझ ज्ञानक्षीण पर करी कृपा।
प्रगटाया वह जो मुझमे छिपा।।

जैसे इक क्षीर में उत्पाद बहुत।
माखन दधि और मलाई घृत।।

वैसे एक आप में गुण हैं अनेक।
तव चरणों का करूँ अभिषेक।।

रहे वरद हस्त मेरे सिर पर।
इतनी करुणा करना मुझ पर।।

आज्ञा हो साधारण या विशेष।
प्रस्तुत है तव सेवक अवधेश।।

✍️अवधेश कनौजिया हे ज्ञानपुंज गुरु नमन तुम्हें।
सन्मार्ग का ध्येय कराया हमें।।

शिक्षित कर हमें कृतार्थ किया।
जीवन का सच्चा अर्थ दिया।।

मेरे लिए ईश्वर रूप हैं आप।
तप की सजीव मूरत हैं आप।।
मेरे शिक्षक हे ज्ञानपुंज गुरु नमन तुम्हें।
सन्मार्ग का ध्येय कराया हमें।।

शिक्षित कर हमें कृतार्थ किया।
जीवन का सच्चा अर्थ दिया।।

मेरे लिए ईश्वर रूप हैं आप।
तप की सजीव मूरत हैं आप।।

पद कमल आपके नमन करूँ।
तव ज्ञान दान से झोली भरूँ।।

मुझ ज्ञानक्षीण पर करी कृपा।
प्रगटाया वह जो मुझमे छिपा।।

जैसे इक क्षीर में उत्पाद बहुत।
माखन दधि और मलाई घृत।।

वैसे एक आप में गुण हैं अनेक।
तव चरणों का करूँ अभिषेक।।

रहे वरद हस्त मेरे सिर पर।
इतनी करुणा करना मुझ पर।।

आज्ञा हो साधारण या विशेष।
प्रस्तुत है तव सेवक अवधेश।।

✍️अवधेश कनौजिया हे ज्ञानपुंज गुरु नमन तुम्हें।
सन्मार्ग का ध्येय कराया हमें।।

शिक्षित कर हमें कृतार्थ किया।
जीवन का सच्चा अर्थ दिया।।

मेरे लिए ईश्वर रूप हैं आप।
तप की सजीव मूरत हैं आप।।