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गुफ्तगु ऐसी रही साल-ओ-साल के बिछड़े दोस्त से जाना घ

गुफ्तगु ऐसी रही साल-ओ-साल के बिछड़े दोस्त से
जाना घर था, मुजरिम के घराने पहुँच गए  
अगवा हुए पर दुल्हे की तरह और दोस्त सहबाला
सिरफिरा डॉन के घर दावत से पड़ गया पाला
दर्जनों आशार कहे तब जा के छूटी जान
क़द्रदान कब कहां कैसे मिल जाएं ये कह नहीं सकते
सनकी दीवाने भी काफी हैं इस दुनियां में मेरी जान
                         - अनवर हुडा (9 Oct. 2021)

 

 #poetrycommunity #urdupoetry #hindipoetry #friends #shayari #anwarhudapoetry
गुफ्तगु ऐसी रही साल-ओ-साल के बिछड़े दोस्त से
जाना घर था, मुजरिम के घराने पहुँच गए  
अगवा हुए पर दुल्हे की तरह और दोस्त सहबाला
सिरफिरा डॉन के घर दावत से पड़ गया पाला
दर्जनों आशार कहे तब जा के छूटी जान
क़द्रदान कब कहां कैसे मिल जाएं ये कह नहीं सकते
सनकी दीवाने भी काफी हैं इस दुनियां में मेरी जान
                         - अनवर हुडा (9 Oct. 2021)

 

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Anwar Huda

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