कहां खोये हो पंछी प्यारे बहुरूपिया हैं दुनिया सारी.. छलती हैं जो रूप बदल कर मतलब का प्यार यहां पर मतलब की हैं यार की यारी.. बहुरूपिया हैं दुनिया सारी.. इस भटकन को विराम दो पंखों को ज़रा आराम दो उतारो सफर की थकन सारी.. बहुरूपिया हैं दुनिया सारी.. खुद को चाह कर देख ज़रा दिल खुद से लगा कर देख जरा तुम खुद पे जाओगे वारी-वारी... बहरूपिया हैं दुनिया सारी... Rekha Bhatia बहुरूपिया हैं दुनिया सारी कवि सुरेश 'अनजान'