मैं और मेरी तन्हाई अक्सर बातें करते हैं, एक अजीब सा इत्तेफाक है, मुझमें और मेरी तन्हाई में, एक रोज सुबह की बात है, जब मैं सोया हुआ था तब मुझे लगा के जैसे मुझे किसी ने आवाज लगाई हो मै ठहरा आलशी मुझे लगा शायद मां बुलाती होगी, मैने चादर ओढ़ी ओर फिर सो गया। थोड़ी देर बाद फिर वही अंधेरी गुमनाम रातों के सपने फिर वही कुछ खोने का डर पर मैंने सोचा शायद कोई बुरा सपना रहा होगा परन्तु बात बुद्धि पर आकर रुक जाती थी, बुद्धि एक ऐशा अवर्ण जो कुछ भी आशानी से मानने वाली कहा थी, बो तो नए नए विचारों को जन्म देती । तब ऐंट्री होती है उसकी जिसने मेरे सोचने का ढंग ही बदल कर रख दिया। दोस्तो अगर आपको मैं और मेरी तन्हाई की सारी बाते जानना चाहते हैं तो प्लीज़ सपोर्ट करो, आपको इस स्टोरी से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा और आपको मज़ा बहुत आने बाला है । thanks for all of you ©Rahul Kumar #मै और मेरी तन्हाई