तमीज़ नहीं सिखाया गया है तुमको नज़र झुका कर आवाज़ नीची रख कर बात करते हैं वो अनपढ़ गवार बेशर्म लड़की क्या गलत कह दिया ? साहब दोबारा पढ़ कर समझा दो उसका यूँ बार बार कहना मुझे समझ नहीं आया, वो बेशक खुद की आबरू बचा नहीं पाई वो अनपढ सही लेकिन इतना जानती थी कि बिना जाने समझे किसी कागज पर हस्ताक्षर नहीं किये जाते तुमको बड़ा नागवार गुजरा, यूँ उसका पलटकर कहना तुम तो जज थे इसलिए भगवान समझ बैठे खुद को तुम भूल गये जितना हक तुम्हारा है उतना हक उसका भी है लुटी -पिटी समाज में कलंकित लड़की ये नाम तुम्हारे सम्माननीय समाज ने ही दिये हैं पुरूषार्थ के खोखले दावे तुम उसको सम्मान ,न्याय और हक देने के बजाय तुम उसको सरकारी कामकाज में बाधा पहुंचाने का शमन थमा बैठे पढ़े- लिखे अंग्रेज़ियत की पोशाक ओढकर तुम जाहिल बन बैठे ये लोकतंत्र तो नहीं हो सकता कि तुमने उसे न्याय देने के बजाय दस दिन हवालात की सजा दे बैठे भरोसा डिगने लगा है न्याय व्यवस्था से माना कानून अंधा है फिर भी जो समान अधिकार दिये हैं उनकी अवमानना एक जज की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति कानून से ऊपर कब से हो गया ? ©®करिश्मा राठौर #अररिया बलात्कार पीड़िता के साथ जज की मनमानी के विरुद्ध है ये कविता Adv.Raj Kaushik🙏( AD.Grk)🙏 R.K.(Advocate)