तूफ़ानी दरिया में कश्ती को, किनारे की तलाश है। जरा ठहर जा ऐ जिन्दगी कि, अभी जीने की आश है।। यूं तो हर मर्तबा, डर डर के ही जिया हूं मैं, कुछ पहर बेखौफ परिंदा की तरह, इस नभ में उड़ने की आस है।। :- सुजीत कुमार मिश्रा प्रयागराज। #आस #suiit_kumar_mishra