ख़ुशियों पे है, मेरे ग़म पे तेरी दावेदारी नहीं!
दर्द, मर्ज़, और मौत में कोई साझेदारी नहीं!
कभी तेरे लब चाहूँ तो कभी तेरी आंखें,
सच है, मेरी आशिक़ी में वफ़ादारी नहीं!
हक़ीक़त बयानी तुझे रुसवा करती रहे,
तेरी शानोशौक़त मेरी तो ज़िम्मेदारी नहीं! #Shayari#Kathakaar