खून की नदियाँ देख बह रही हैं नदियाँ और फिर भी प्यासी है ये वादियाँ वो नदियाँ है खूनों की जहाँ ठोड़ी दूर से आती है आवाज गोली-बंधूक कि ध्वनियों की। हैवानों का है वहाँ बसेरा जहाँ न होती है खुशियों का सवेरा। खुनो कि नदियाँ बहाना है उनका पेशा गोलियों से बात करना है उनकी भाषा।। माँयें चिल्ला रही है, बच्चे तड़प रहे है। पर वहाँ कोई न है सुनने वाला, क्योंकि मानव ही है मानव को खाने वाला।। देख चारों दिशा मे फैल रहा है अंधकार रूक जा ऐ हैवान, मानवता की है बस यही पुकार।। मत बहा ये खून कि नदियाँ, तेरे घर मे भी होगी तेरी बीबियाँ। देख अपनी माँ कि ममता, वो भी सिखा रही है तुझे मानवता ।। खून की नदियाँ देख बह रही हैं नदियाँ और फिर भी प्यासी है ये वादियाँ वो नदियाँ है खूनों की जहाँ ठोड़ी दूर से आती है आवाज गोली-बंधूक कि ध्वनियों की।