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#happyindependenceday #स्वंतत्रादिवस हाँ, शायद मैं

#happyindependenceday #स्वंतत्रादिवस
हाँ, शायद मैं खुश हूँ  #happyindependenceday #स्वंतत्रादिवस 

स्वंतत्रा दिवस की 71वीं वर्षगाँठ की मुबाऱकबाद, हर जगह जश्न का माहौल है, कहीं वीरों के बलिदान को याद कर के श्रद्धांजलि दी जा रही तो कहीं एक दिन छुट्टी मिलने का जश्न है| इसी बीच मैं भी खुश होने की कोई वजह ढूढ़ रहा हूँ, सोचता हूँ किस बात को ले कर खुश हो जाऊं,15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गए और हमें एक साथ कई तरह की आजादी दे गए जैसे की हमारे देश के एक बड़े हिस्से से हमको आजाद कर गए, शासक की जगह शासन और प्रशासन की माला गले में और पैरों डाल गए,राष्ट्रभक्ति की जगह अंधभक्ति की माला हाथों में पहना गए,क्रांति के समय की सूखी रोटी और गुलाब जो सब को एक होने का सन्देश देता था उसकी जगह धर्म, जाति की तलवारें थमा गये, और जाते जाते गोरे गए पर गोरेपन की चाह छोड़ गए | पर सवाल फिर भी वही है मैं खुश क्यों हो जाऊं? 
1829 में राजा राम मोहन रॉय जी के प्रयासों से सती प्रथा का अंत हो गया पर स्त्री तो आज भी जल रही है कहीं धर्म की काली चादर के नीचे, तो कहीं जाति-पाँति के भेद-भाव के चलते खुद को मिटाती, कहीं स्वावलंबी बनने की चाह लिए हुए रोज हजारों आखों से खुद को छुपाती, कहीं 17 साल की दिल्ली की निर्भया तो कहीं 7 साल की मंदसौर की गुड़िया के साथ लगातार कुकर्म होते जा रहे हैं, आज भी प्रतिदिन लगभग 250 नाबालिक बालक बालिकाएं लापता होते हैं, कानून बने प्रथाएं बनी-बिगड़ी कुछ नारी शक्ति की मिसालें भी बनीं पर कुछ मिसालें तो तब भी थीं, पर वो आज भी बेचारी है क्यों, क्यों कि वो नारी है |
भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा शक्ति है और यहाँ युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा 40-60 साल के बीच की बुजुर्ग होती आबादी पर निर्भर है, ना शिक्षा का स्तर मानकों के अनुरूप है ना ही रोजगार की संभावनाएं दिखाई देती है कुछ निम्न स्रतर की सरकारी नौकरी के लिए करोड़ों में आवेदन आना और हादसों का होना आम सा हो गया है, परीक्षा और परिणाम के बीच में कुछ अवाँछनीय स्तरों (जैसे परीक्षा के पेपर का आउट होना,परीक्षार्थी का धरना प्रदर्शन, हाईकोर्ट में केस का चलना , फिर सुप्रीमकोर्ट में केस चलना, फिर सीबीआई जाँच होना और फिर पुन: पेपर होना जिसमे भी पूर्ण पारदर्शिता का आभाव होना, और सालों बाद रिजल्ट का आना ) का जुड़ना भी शर्मसार करता है, शायद ये भी खुश होने का कारण प्रतीत नहीं होता| 
हमने विज्ञानं और प्रौधोगिकी के क्षेत्र में बहुत तरक्की की ये भी नहीं कह सकता, भारत में मिलने वाले लगभग हर सामन के पीछे "मेड इन चाइना" का टैग आत्मसम्मान को ठेस ही नहीं पहुँचता भारत की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह छोड़ जाता है, भारत आज भी कृषि पर निर्भर है और कृषक ही आत्म हत्या कर रहा है,प्रौद्योगिकी इतनी महँगी है कि उसका प्रयोग आसान नहीं है, बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज ले कर देश छोड़ रहे हैं और उसके बोझ के तले आमनागरिक दबता जा रहा रहा है शासन प्रशासन मौन हैं | 
नये शहर बने और पुराने और भी फ़ैल गए पर गावं आज भी गावं ही बने हैं, शहर को पलायन आज भी उतनी ही तेजी से जारी है, अगर भारत देश की आत्मा गावों में बसती है तो खुद की आत्मा से अलगाव की प्रथा को कम क्यों नहीं किया जा सका |

#happyindependenceday #स्वंतत्रादिवस हाँ, शायद मैं खुश हूँ #happyindependenceday #स्वंतत्रादिवस स्वंतत्रा दिवस की 71वीं वर्षगाँठ की मुबाऱकबाद, हर जगह जश्न का माहौल है, कहीं वीरों के बलिदान को याद कर के श्रद्धांजलि दी जा रही तो कहीं एक दिन छुट्टी मिलने का जश्न है| इसी बीच मैं भी खुश होने की कोई वजह ढूढ़ रहा हूँ, सोचता हूँ किस बात को ले कर खुश हो जाऊं,15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ अंग्रेज भारत छोड़ कर चले गए और हमें एक साथ कई तरह की आजादी दे गए जैसे की हमारे देश के एक बड़े हिस्से से हमको आजाद कर गए, शासक की जगह शासन और प्रशासन की माला गले में और पैरों डाल गए,राष्ट्रभक्ति की जगह अंधभक्ति की माला हाथों में पहना गए,क्रांति के समय की सूखी रोटी और गुलाब जो सब को एक होने का सन्देश देता था उसकी जगह धर्म, जाति की तलवारें थमा गये, और जाते जाते गोरे गए पर गोरेपन की चाह छोड़ गए | पर सवाल फिर भी वही है मैं खुश क्यों हो जाऊं? 1829 में राजा राम मोहन रॉय जी के प्रयासों से सती प्रथा का अंत हो गया पर स्त्री तो आज भी जल रही है कहीं धर्म की काली चादर के नीचे, तो कहीं जाति-पाँति के भेद-भाव के चलते खुद को मिटाती, कहीं स्वावलंबी बनने की चाह लिए हुए रोज हजारों आखों से खुद को छुपाती, कहीं 17 साल की दिल्ली की निर्भया तो कहीं 7 साल की मंदसौर की गुड़िया के साथ लगातार कुकर्म होते जा रहे हैं, आज भी प्रतिदिन लगभग 250 नाबालिक बालक बालिकाएं लापता होते हैं, कानून बने प्रथाएं बनी-बिगड़ी कुछ नारी शक्ति की मिसालें भी बनीं पर कुछ मिसालें तो तब भी थीं, पर वो आज भी बेचारी है क्यों, क्यों कि वो नारी है | भारत में विश्व की सबसे बड़ी युवा शक्ति है और यहाँ युवा आबादी का एक बड़ा हिस्सा 40-60 साल के बीच की बुजुर्ग होती आबादी पर निर्भर है, ना शिक्षा का स्तर मानकों के अनुरूप है ना ही रोजगार की संभावनाएं दिखाई देती है कुछ निम्न स्रतर की सरकारी नौकरी के लिए करोड़ों में आवेदन आना और हादसों का होना आम सा हो गया है, परीक्षा और परिणाम के बीच में कुछ अवाँछनीय स्तरों (जैसे परीक्षा के पेपर का आउट होना,परीक्षार्थी का धरना प्रदर्शन, हाईकोर्ट में केस का चलना , फिर सुप्रीमकोर्ट में केस चलना, फिर सीबीआई जाँच होना और फिर पुन: पेपर होना जिसमे भी पूर्ण पारदर्शिता का आभाव होना, और सालों बाद रिजल्ट का आना ) का जुड़ना भी शर्मसार करता है, शायद ये भी खुश होने का कारण प्रतीत नहीं होता| हमने विज्ञानं और प्रौधोगिकी के क्षेत्र में बहुत तरक्की की ये भी नहीं कह सकता, भारत में मिलने वाले लगभग हर सामन के पीछे "मेड इन चाइना" का टैग आत्मसम्मान को ठेस ही नहीं पहुँचता भारत की नीतियों पर प्रश्न चिन्ह छोड़ जाता है, भारत आज भी कृषि पर निर्भर है और कृषक ही आत्म हत्या कर रहा है,प्रौद्योगिकी इतनी महँगी है कि उसका प्रयोग आसान नहीं है, बड़े बड़े उद्योगपति बैंकों से कर्ज ले कर देश छोड़ रहे हैं और उसके बोझ के तले आमनागरिक दबता जा रहा रहा है शासन प्रशासन मौन हैं | नये शहर बने और पुराने और भी फ़ैल गए पर गावं आज भी गावं ही बने हैं, शहर को पलायन आज भी उतनी ही तेजी से जारी है, अगर भारत देश की आत्मा गावों में बसती है तो खुद की आत्मा से अलगाव की प्रथा को कम क्यों नहीं किया जा सका |

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