वक्त का ज़रा तकाजा़ है साहब वर्ना काम के तो हम भी थे थक गयी है अब सासों की सुईया अभी, वर्ना वक्त के मजबुत तो हम भी थे। लग रहे है अब ताले सपनो के उस मकां में, वर्ना नींव के पक्के तो हम भी थे। ढल रहा है जिंदगी का सूरज आहिस्ता, वर्ना जगमगाता हुआ उजाला तो हम भी थे। आज तो याद हैं हम ना जाने कब तक रहेंगे, जि़क्र करने के शौकीन तो हम भी थे। ना रहें कभी तो भी एक बार ये ज़रूर कह दिजिएगा चुप ही रहते थे पर बात के सच्चे तो हम भी थे। ye un dino ki baat hai.....