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विषय-हां मैं एक औरत हूं💐 हां मैं एक औरत हूं , यह

विषय-हां मैं एक औरत हूं💐

हां मैं एक औरत हूं ,
यह कहते हुए मैं जरा भी नहीं घबराती,
मम्तव के आंगन में पल कर बढ़ी हुई,

जब मायके में थी तो दीदी, बेटी ,
बहन बन कर रही,
और जब ससुराल आई तो मेरे 
अंगणित नाम हो गए,

किसी की भाभी किसी की मामी 
किसी की बहू ताई दादी मां न जाने 
कितने नाम मेरे पड़ गए,

इन्हें नामों के बीच मैंने सब का 
ढेर सारा प्यार पाया,
इन्हीं के बीच में अपने आपको भूलती 
चली गई,

कभी-कभी बैठे में ये सोचती, ईश्वर 
ने भी एक औरत बनाकर पूरी सृष्टि 
का सृजन किया है,
पूरा मम्तव का भार उसी को सौंप 
दिया है,

अगर औरत ना हो इस सृष्टि में,
मुझे लगता है कोई जन्म धार ही 
ना हो इस दृष्टि में,

स्वरचित रचना दीप्ति गर्ग💐🌷

©Deepti Garg
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