स्पर्श_आस्तित्व _______________ *** हमारे धर्म ग्रंथ भी प्रेम कहानियों से भरे पड़े है जिनमे बहुत सी कहानियां ईर्ष्या छल द्वेष घृणा करुणा के आसपास घूमती है, ऐसी ही एक पौराणिक प्रेम कथा है। #तारा_और_चांद_की........ ह्यूमन रिलेशन शिप में प्रेम की उत्पत्ति का कारक चंद्रमा ही होता है किसी भी रिश्ते की नजदीकियां जुड़ना टूटना बिछड़ना ये सब चंद्रमा के प्रबल या कमजोर होने के कारण होते है , चंद्रमा स्वयं प्रेम का प्रतिरूप और स्वरूप है जो लव और इमोशंस का निर्धारक ग्रह है । सनातन और सदियों पुरानी कहानी है कि नभ में एकसाथ विचरण करते बृहस्पति की पत्नी तारा और चांद को एकदूसरे से प्रेम हो गया,,, बृहस्पति देवताओं के गुरुदेव है इसलिए हरवक्त वो नीति धर्म जपतप और वेदों की चर्चाओं में लीन रहते थे.... उनके पास अपनी ही पत्नी के लिए समय नही था, इसकारण तारा और चांद की नजदीकियां इसकदर बढ़ गई कि चांद के प्रणय में डूबी बृहस्पति की पत्नी अपने प्रिय चंद्रमा के अंक में खो गई.... बृहस्पति उस समय यज्ञ में लीन थे और उनको अपने वामांग में अपनी पत्नी चाहिए थी उन्होंने आकाश में टिमटिमाते तारो की देवी की तरफ देखा जो चांद के बाहुपाश में दिखी, बृहस्पति आग बबूला हो उठे .. और कहा जब "#स्त्री_नही_तो_यज्ञ_नही" देवराज इंद्र असमंजस में आ गए, वो जानते थे अगर यज्ञ सम्पूर्ण नही हुआ तो देवताओं को सोमरस का सुख नही मिलेगा, उन्होंने तारा को आदेश दिया तत्काल बृहस्पति के पास लौट जाएं... जब तारा पति के पास वापस आई तो वो गर्भ से थी, बृहस्पति ने क्रोध में तारा से पूछा,,,, तुम्हारे गर्भ में किसका बच्चा है? उसवक्त गर्भ के बालक ने कहा.... "मैं वो पौधा हूँ जो चन्द्र के बीज से उपजा हूँ" यही बालक जन्म के बाद #बुध ग्रह से जाने गया। अपनी पत्नी के धोखा और इस कटु सत्य को सुनकर बृहस्पति व्यथित हो गए जिसकारण उस बालक को नपुंसक,, "न नर न नारी" होने का श्राप दे बैठे। तब से वैदिक नियम में विवाह के द्वारा पिता का निर्धारण का नियम बना, साथ ही बुध को नपुंसक ग्रह माना जाने लगा , आखिर इसी कहानी ने महाभारत के पहले बीज बोए थे। ©पूर्वार्थ #MoonHiding