#FourlinePoetry परी वो पापा की परी थी सपनो से भरी थी नाजुक सी कली थी खुशियों में पली थी मन्नतों से मिली थी वो घर की बड़ी थी संस्कारों से भरी थी बंदिशों से घिरी थी वो पापा की ............................................ आंख सबकी भरी थी..................... जब ससुराल वो चली थी मा का कलेजा ,बाप की पगड़ी थी पर आज सब छोड़ कर चली थी जो नाजो से पली थी ........... ................... वो पापा की ............................................... पर अब कहानी कुछ बदली थी जब ससुराल। में वो मिली थी जो मायके में सबसे लड़ी थी वो ससुराल में चुप - चाप खड़ी थी वो पापा की पारी थी ....................... ©kalpana परी