कशमकश... सबकी उम्मीदों पे हां वो है खरी पर खुद के लिए कुछ तो है कमी.. मन का सबके है करती, बस मन अपना कहां है रखती.. अपने घर में वो खुलकर है जीती भीतर हृदय में दबा लेती चुप्पी कभी शून्य को कुछ ताकती, चुपके से कभी चांद को है झांकती .. झलकती अब सफेद चांदनी गेसुओं में, मुड़ पीछे वो उम्र है निहारती .. यूं तो निपुण शायद हर एक बात में, कहलाई साधारण गृहिणी ही जाती है.. ✍️✍️✍️... #गृहिणी#कशमकश #उम्मीदें #उम्र #मन #तूलिका #tulikagarg