कुछ अनकही कुनबापरस्ती दास्तां ... कभी किसी के आंसू धोखा दे जाए, कभी छल कर जाए किसी की मुस्कान, काश हर किसी को कोई समझ जाए, कोई और नहीं, आइने में ही है वो इंसान। खुशी और गम के तराजू में ज़िन्दगी झूल रही, सफलता और संघर्ष की सियाही भी अब सूख रही, ज़िन्दगी के ये कोरे कागज़ अब संभाले नहीं संभल रही, और कुनबापरस्ती की आंग में भस्म हो रही । मानसिक तनाव और चिंता से हर कोई जूझ रहा, आंसू और पसीने से इंसान अपनी मंज़िल सींच रहा, खुशियों का बगीचा भी अब सूना सा है, तनावग्रस्त जीवन में यही एक आशियाना सा है । वर्षा और तूफान का भी विचित्र संगम है, आंसू और पसीने तो धो देती है, पर आगे बढ़ते कदमों को भी रोक देती है। रोड़े तो आएंगे, पथ भी दुर्गम होते जाएंगे, दशरथ मांझी सा ठोस तो कर इरादों को, पर्वत के गर्भ से भी नए राह बनते जाएंगे, और गैरों की महफ़िल में एक पहचान बना कर जाएंगे । ©अशोक साह #SushantSinghRajput कुछ अनकही कुनबा-परस्ती दास्तां