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...इंसा का शहर... मैं नफरतों के शहर का बाशिन्दा,

...इंसा का शहर...


मैं नफरतों के शहर का बाशिन्दा,
मिला एक रोज़ मै इंसानो की बस्ती से
खाल इंसान की मे,
खून गिरगिट का लिए हुए है,
हुस्न का रंग लाल कहके,
ये कत्लेआम किये हुए है।

तलवार भी निकम्मी हो गई, 
ये जुवां इतनी तेजधार लिए हुए है
ये नीयत साफ के तोते,
मिट्ठू मिट्ठू किये हुए है।

मन मौजी है खवाइश,
 कटोरे मे भीख जमा किये है,
अबे पंडित कहां लिखने बैठ गया तू,
ये फटे कागज पे भी निगाह किये हुए है,

दफन हो जाती है हर अच्छाई यहाँ,
ग्रंथो की पोथी मे,….
ये देव देश मे..
बेच दी जाती है बच्चियां कोठों पे...।
शर्म भी डुबकी लगा गई है किसी नाले मे,
क्योंकि 
 अधर्मी का लगा है तांता हर गंगा किनारे पे।

©Shalini Pandit इंसान का शहर ....

#ShaliniPandit #Nojoto #thought #human_nature #NojotoFamily 

#BookLife
...इंसा का शहर...


मैं नफरतों के शहर का बाशिन्दा,
मिला एक रोज़ मै इंसानो की बस्ती से
खाल इंसान की मे,
खून गिरगिट का लिए हुए है,
हुस्न का रंग लाल कहके,
ये कत्लेआम किये हुए है।

तलवार भी निकम्मी हो गई, 
ये जुवां इतनी तेजधार लिए हुए है
ये नीयत साफ के तोते,
मिट्ठू मिट्ठू किये हुए है।

मन मौजी है खवाइश,
 कटोरे मे भीख जमा किये है,
अबे पंडित कहां लिखने बैठ गया तू,
ये फटे कागज पे भी निगाह किये हुए है,

दफन हो जाती है हर अच्छाई यहाँ,
ग्रंथो की पोथी मे,….
ये देव देश मे..
बेच दी जाती है बच्चियां कोठों पे...।
शर्म भी डुबकी लगा गई है किसी नाले मे,
क्योंकि 
 अधर्मी का लगा है तांता हर गंगा किनारे पे।

©Shalini Pandit इंसान का शहर ....

#ShaliniPandit #Nojoto #thought #human_nature #NojotoFamily 

#BookLife